प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
अथवा
मध्य पाषाणकालीन संस्कृति पर विस्तृत निबन्ध लिखिए।
अथवा
मध्य पाषाणकालीन संस्कृति पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर-
मध्य पाषाणकालीन संस्कृति
मध्य पाषाणकालीन संस्कृति के विषय में सर्वप्रथम जानकारी 1867 ई. में सी. एल. कार्लाइल द्वारा विन्ध्य क्षेत्र से लघु पाषाण उपकरण खोजने के दौरान हुई। इसके बाद देश के विभिन्न स्थलों से इस प्रकार के पाषाण उपकरण खोज निकाले गये। इन उपकरणों के विस्तृत भू-भाग पर फैले होने के कारण यह स्पष्ट है कि इस काल का मानव अपेक्षाकृत एक विस्तृत भू-भाग में निवास करता था।
मानव-जीवन - मध्य पाषाण काल के लोगों का जीवन पूर्व-पाषाण काल के लोगों की अपेक्षा कुछ भिन्न था। यद्यपि अब भी वे अधिकांश रूप में शिकार पर ही निर्भर थे तथापि इस काल के लोग गाय, बैल, भेड़, बकरी, जंगली घोड़े तथा भैंसे आदि का शिकार भी करने लगे थे। उन्होंने थोड़ी-बहुत कृषि भी करना सीख लिया था। अपने अस्तित्व के अन्तिम चरण तक उन्होंने बर्तनों को निर्माण करना भी सीख लिया था। पशुओं से धीरे-धीरे उनका परिचय बढ़ रहा था। सरायनाहर राय तथा महदाहा की समाधियों से इस काल के लोगों की अन्त्येष्टि संस्कार विधि के विषय में कुछ जानकारी मिलती है। ऐसा अनुमान है कि ये अपने मृतकों को समाधियों में गाड़ते थे तथा उनके साथ खाद्य सामग्रियाँ, औजार- हथियार भी रख देते थे।
उपकरण - मध्य पाषाण काल के उपकरण अत्यन्त छोटे आकार के प्राप्त हुए हैं। ये लगभग आधे इंच से लेकर पौन इंच के बराबर हैं। इनमें टेढ़े ब्लेड, छिद्रक, स्क्रेपर, ब्यूरिन, बेधक, चान्द्रिक आदि प्रमुख हैं। कुछ स्थानों से हड्डी तथा सींग के बने हुए उपकरण भी मिले हैं। पाषाण उपकरण चर्ट, चाल्सेडनी, जैस्परं, एगट, क्वार्टजाइट, फ्लिन्ट जैसे कीमती पत्थरों के हैं। कुछ उपकरण त्रिभुज तथा समलम्ब चतुर्भुज के आकार के हैं।
मध्य पाषाणकालीन संस्कृति के विभिन्न पुरास्थल
भारत में मध्य पाषाण काल के पुरास्थल राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों में स्थित हैं जहाँ से पुरातत्ववेत्ताओं ने उत्खनन के फलस्वरूप पाषाण के लघु उपकरण प्राप्त किये हैं। मध्य पाषाण काल के जिन स्थानों की खुदाइयाँ हुई हैं उनमें कब्रिस्तानों की संख्या अधिक है। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि भारत में मानव अस्थिपंजर मध्य पाषाण काल से ही सर्वप्रथम प्राप्त होने लगते हैं।
राजस्थान - राजस्थान का सबसे प्रमुख स्थल भीलवाड़ा जिले में स्थित बागोर है। यहाँ वी. एन. मिश्र ने 1968 से 1970 तक उत्खनन कार्य करवाया था। यहाँ से मध्य पाषाणकालीन उपकरणों के अतिरिक्त लौह काल के उपकरण भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ से एक मानव कंकाल भी मिला है।
गुजरात - गुजरात प्रान्त में स्थित लंघनाज सबसे महत्वपूर्ण पुरास्थल है जहाँ एच. डी. संकालिया, बी. सुब्बाराव, ए. आर. कनेडी आदि पुराविदों द्वारा व्यापक उत्खनन कार्य करवाया गया था। यहाँ से पाषाण के लघु उपकरणों के अतिरिक्त पशुओं की हड्डियाँ, कब्रिस्तान तथा कुछ मिट्टी के बर्तन भी प्राप्त हुए हैं। पाषाण के उपकरणों में फ्लेक ही अधिक हैं। यहाँ से चौदह मानव कंकाल मिले हैं।
आन्ध्र प्रदेश व कर्नाटक - आन्ध्र प्रदेश में नागार्जुनकोण्ड, गिद्दलूर तथा रेनिगुन्टा प्रमुख स्थल हैं जहाँ से मध्यपाषाणिक उपकरण प्रकाश में आये हैं। इसी प्रकार कर्नाटक में बेल्लारी जिले में स्थित संगनकल्लू नामक स्थान पर सुब्बाराव तथा संकालिया द्वारा क्रमशः 1946 तथा 1969 में खुदाइयाँ करवायी गयीं जिसके फलस्वरूप अनेक उपकरण प्राप्त हुए।
मध्य प्रदेश - आर. वी. जोशी ने 1964 ई. में होशंगाबाद जिले में स्थित आदमगढ़ शैलाश्रय से लगभग 25 हजार पाषाण के लघु उपकरण प्राप्त किये थे। इसी प्रकार रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका के शैलाश्रयों और गुफाओं से मध्य पाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए यहाँ से मानव अन्त्येष्टि के भी प्रमाण मिले हैं।
बिहार तथा पश्चिम बंगाल - बिहार प्रान्त के रांची, पलामू, भागलपुर, राजगीर आदि जिलों से अनेक पाषाण के लघु उपकरण मिले हैं। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में स्थित बीरभानपुर एक महत्वपूर्ण मध्यपाषाणिक पुरास्थल है जहाँ 1954 से 1957 ई. तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से बी. बी. लाल ने उत्खनन कार्य करवाया था। यहाँ से लगभग 282 लघु उपकरण मिले हैं जिनमें ब्लेड, बेधक, ब्यूरिन, चान्द्रिक, स्क्रेपर, छिद्रक आदि मुख्य हैं।
उत्तर प्रदेश - उत्तर प्रदेश का विन्ध्य तथा ऊपरी एवं मध्य गंगा घाटी वाला क्षेत्र मध्य पाषाणकालीन उपकरणों के लिये अत्यन्त समृद्ध है। विन्ध्य क्षेत्र के अन्तर्गत वाराणसी जिले की चकिया तहसील, मिर्जापुर जिला, इलाहाबाद की मेजा, करछना, तथा बारा तहसीलों के साथ-साथ बुन्देलखण्ड क्षेत्र को शामिल किया जाता है। इन स्थानों से बहुसंख्यक पाषाण के लघु उपकरणों के साथ-साथ नर कंकाल भी मिले हैं जिनमें से अधिकांश के सिर पश्चिम दिशा में हैं। मिर्जापुर जिले से प्राप्त पाषाण के लघु उपकरणों में एक विकास-क्रम देखने को मिलता है। यहाँ के उपकरण क्रमशः लघुतर होते गये हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ की खुदाई से झोपड़ियों के भी प्रमाण मिलते हैं। प्रतापगढ़ जिले में स्थित सरायनाहर राय, महदाहा तथा दमदमा नामक मध्यपाषाणिक पुरास्थलों का उत्खनन जी. आर. शर्मा तथा उनके सहयोगियों द्वारा करवाया गया। सरायनाहर राय के पाषाण के लघु उपकरण कुण्ठित ब्लेड, स्क्रेपर, चान्द्रिक, बेधक, समबाहु एवं विषमभाहु त्रिभुज आदि हैं जिनके निर्माण में चर्ट, चाल्सिडनी, एगेट, जैस्पर आदि पत्थरों का प्रयोग हुआ है। कुछ . अस्थि - निर्मित तथा कुछ सींग-निर्मित उपकरण भी मिलते हैं। उपकरणों के अतिरिक्त यहाँ की खुदाई में 14 शवाधान तथा 8 गर्त चूल्हे भी प्राप्त हुए हैं। शवाधानों से तत्कालीन मृतक - संस्कार पर प्रकाश पड़ता है। समाधिस्थ शवों का सिर पश्चिम तथा पैर पूर्व की ओर मिले हैं जिनके साथ लघु उपकरण भी रखे गये हैं। चूल्हों से पशुओं की अधजली हड्डियों के मिलने से अनुमान लगाया जाता है कि इनका उपयोग मांस भूनने के लिये किया जाता था।
इस प्रकार स्पष्ट है कि मध्यपाषाणिक संस्कृति राजस्थान से लेकर मेघालय तक और उत्तर प्रदेश से लेकर कृष्णा नदी तक प्राप्त हुई है। बागोर तथा तिलवार (राजस्थान) इस युग के प्रमुख स्थल हैं।। बागोर में मध्य पाषाण युग में पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। गुजरात में लंघनाज, बलसाआ तथा आदमगढ़ (मध्य प्रदेश) से भी पशुपालन के साक्ष्य मिले हैं। संगनकल (कर्नाटक), रेणीगुंटा (आन्ध्र प्रदेश), तिन्नेवेली (तमिलनाडु), मयूरभंज (बिहार) तथा सेबालगिरि (मेघालय) से इस संस्कृति के पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं।
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- प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
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- प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
- प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
- प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।